उत्तराखंड: सोमवार को एनआईटी (NIT) उत्तराखंड स्थाई और अस्थाई कैंपस विवाद में उच्च न्यायालय नैनीताल ने भारत सरकार और उत्तराखंड सरकार को ज़ोरदार झटका देते हुए सुमाड़ी में स्थाई कैम्प्स बनाने के निर्णय को निरस्त कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने 80 पेजों की जजमेंट में कहा है कि दोनों सरकारों ने छात्रों की सुरक्षा को दरकिनार कर के यह निर्णय लिया था। वहीं छात्रों की सुरक्षा को केंद्र में रख कर चार माह के भीतर एनआईटी के स्थाई कैम्पस को कहाँ बनाना है इसका निर्णय ले।
पूर्व छात्र जसवीर सिंह के तर्क को स्वीकारते हुए न्यायालय ने दोनों सरकारों को और एनआईटी प्रशासन को 1 जुलाई 2021 से पूर्व ही अस्थाई कैम्प्स (श्रीनगर गढ़वाल) की सभी सुख सुविधाओं को तामील करने आदेश दिया है।
इसके साथ ही उच्च न्यायालय ने अस्थाई कैंपस के दो हिस्सो में बंटे होने की वजह से, सड़क पार करते हुए एक्सीडेंट के कारण पैरालाइज हुई छात्रा नीलम मीना को छात्रों की और से की गई पैरवी को भी स्वीकारते हुए उसके पूरे मेडिकल खर्चे के अतिरिक्त उसे 25 लाख रुपया देने का आदेश दिया है।
बता दें, अक्टूबर 2018 में एन आई टी की तृतीया वर्ष की छात्रा नीलम मीना, कैंपस के दो भागों में बटें होने से NH 58 पार करते समय सड़क दुर्घटना का शिकार होने के कारण पैरालाइज हो गयी थी। गौरतलब है, की राजनीति के चलते एन आई टी को फुटबाल बनाने के खेल पर उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद विराम लगने की उम्मीद है। यह कई मायनो में भारतीय संविधानिक कानून के लिए भी एक ऐतिहासिक निर्णय है, क्योंकि कैंपस की लोकेशन सम्बन्धित कोई ऐसा विवाद पहले न्यायालय में नहीं आया था। बता दें, भारत सरकार के एमएचआरडी मंत्रालय ने इसके लिए 909 करोड़ की मंजूरी दी हैं, मगर अब तक इसे भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने मंजूरी नहीं दी है।।