उत्तराखंड में धामी सरकार ने पहली ही कैबिनेट बैठक में यूनिफॉर्म सिविल कोड के विषय पर मुहर लगा दी है। आने वाले दिनों में इस मामले पर विचार के लिए कमेटी का गठन किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड हमारे भारत का एक ऐसा जीवंत राज्य है जिसकी संस्कृति और विरासत सदियों से भारतीय सभ्यता के मूल में समाहित रही है। भारतीय जनमानस के लिए उत्तराखंड एक देवभूमि है, जो कि हमारे वेदों-पुराणों, ऋषियों-मनीषियों के ज्ञान और आध्यात्म का केंद्र रही है। भारत के कोने कोने से लोग बड़ी आस्था और भक्ति के साथ उत्तराखंड आते है। इसलिए उत्तराखंड की सांस्कृतिक – आध्यात्मिक विरासत की रक्षा अहम है। 130 करोड़ लोगों की आस्था का केंद्र माँ गंगा का उद्गम स्थल भी उत्तराखंड ही है। भारत का मुकुट हिमालय, और उसकी कोख में पनपती प्रकृति उत्तराखंड की धरोहर हैं। इसलिए उत्तराखंड में पर्यावरण की रक्षा भी अहम है।उत्तराखंड देश के लिए सामरिक दृष्टि से भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है। दो देशों की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से जुड़ा होने के कारण भारत के लिए इस राज्य का भौगोलिक और रणनीतिक महत्व काफी बढ़ जाता है। इसलिए राष्ट्ररक्षा के लिए भी उत्तराखंड की भूमिका अहम है।उत्तराखंड के नागरिकों का भारतीय सेनाओं के साथ एक लंबा और गौरवशाली संबंध रहा है। यहाँ के लोगों ने पीढ़ी दर पीढ़ी अपने आपको देश की सुरक्षा के लिए समर्पित किया है। इस धरती के कितने ही वीर सपूतों ने देश के लिए अपने सर्वोच्च बलिदान दिये हैं। यहाँ लगभग हर परिवार से कोई पिता, कोई बेटा, कोई बेटी देश के किसी न किसी हिस्से में हमारी सेनाओं के माध्यम से मातृभूमि की सेवा में जुटा है।उत्तराखंड की सांस्कृतिक आध्यात्मिक विरासत की रक्षा, यहाँ के पर्यावरण की रक्षा और राष्ट्र रक्षा के लिये उत्तराखंड की सीमाओं की रक्षा ये तीनो ही आज उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए अहम है। इस दृष्टि से नई सरकार ने अपने शपथ ग्रहण के तुरंत बाद पहली कैबिनेट बैठक में निर्णय लिया कि न्यायविदों, सेवानिवृत्त जजों, समाज के प्रबुद्ध जनो और अन्य स्टेकहोल्डर्स की एक कमेटी गठित करेगी जो कि उत्तराखंड राज्य के लिए ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ का ड्राफ्ट तैयार करेगी। इस यूनिफॉर्म सिविल कोड का दायरा विवाह-तलाक, ज़मीन-जायदाद और उत्तराधिकार जैसे विषयों पर सभी नागरिकों के लिये समान क़ानून चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों, होगा।मुख्यमंत्री ने कहा कि ये ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ संविधान निर्माताओं के सपनों को पूरा करने की दिशा में एक अहम कदम होगा और संविधान की भावना को मूर्त रूप देगा। ये भारतीय संविधान के आर्टिकल 44 की दिशा में भी एक प्रभावी कदम होगा, जो देश के सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता की संकल्पना प्रस्तुत करता है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर इसे लागू करने पर ज़ोर दिया है। साथ ही, इस महत्वपूर्ण निर्णय में हमें गोवा राज्य से भी प्रेरणा मिलेगी जिसने एक प्रकार का ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ लागू करके देश में एक उदाहरण पेश किया है।उत्तराखंड में जल्द से जल्द ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने से राज्य के सभी नागरिकों के लिए समान अधिकारों को बल मिलेगा। इससे राज्य में सामाजिक समरसता बढ़ेगी, जेंडर जस्टिस को बढ़ावा मिलेगा, महिला सशक्तिकरण को ताकत मिलेगी, और साथ ही देवभूमि की असाधारण सांस्कृतिक आध्यात्मिक पहचान को, यहाँ के पर्यावरण को सुरक्षित रखने में भी मदद मिलेगी। उत्तराखंड का ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ दूसरे राज्यों के लिए भी एक उदाहरण के रूप में सामने आएगा।मुख्यमंत्री ने कहा कि उपरोक्त पृष्ठभूमि में उदेश्य को प्राप्त करने के लिए उत्तराखण्ड राज्य में रहने वाले सभी नागरिकों के व्यक्तिगत नागरिक मामलों को नियंत्रित करने वाले सभी प्रासंगिक कानूनों की जांच करने और मसौदा कानून या मौजूदा कानून में संशोधन के साथ उस पर रिपोर्ट करने के लिए विवाह, तलाक, सम्पत्ति के अधिकार, उत्तराधिकार से सम्बंधित लागू कानून और विरासत, गोद लेने और रख रखाव और संरक्षता इत्यादि के लिए एक विशेषज्ञों, वुद्धिजीवियों और हितधारकों की एक समिति मा० उच्चतम न्यायालय / मा० उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश / मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में, गठित करने का प्रस्ताव है। राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से उत्तराखण्ड सरकार उपरोक्तानुसार एक समिति का गठन करेगी जिसमें उसकी संरचना, संदर्भ की शर्तें आदि का भी उल्लेख रहेगा।क्या है समान नागरिक संहिता: यूनिफार्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का अर्थ होता है, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून। चाहे व्यक्ति किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक कानून लागू होगा।राज्य सरकार को यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने का है अधिकार: समान नागरिक संहिता पर जब भी बहस हुई है तो इस मामले में कानूनी पेचीदगियों का हमेशा जिक्र हुआ है। कानून के कुछ जानकार राज्य सरकारों के पास इस मामले में इसे लागू करने का अधिकार नहीं होने की बात कहते रहे हैं। हालांकि, अधिकतर जानकार राज्य सरकारों के पास भी अधिकार होने की बात बताते हैं।दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का जिक्र है। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता चंद्रशेखर तिवारी कहते हैं कि शादी, तलाक और उत्तराधिकार और संपत्ति अधिकारों जैसे मामले संविधान की संयुक्त सूची में आते हैं, इसलिए केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार भी इससे जुड़े कानून बनाने का अधिकार रखती हैं।इस कानून पर निरंतर चल रही है बहस: अभी देश मुस्लिम, इसाई, और पारसी का पर्सनल ला लागू है। हिंदू सिविल ला के तहत हिंदू, सिख और जैन आते हैं, जबकि संविधान में समान नागरिक संहिता अनुच्छेद 44 के तहत राज्य की जिम्मेदारी बताया गया है। ये आज तक देश में लागू नहीं हुआ है। इस कानून पर निरंतर बहस चल रही है।गौर हो कि, पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव से पहले बड़ा ऐलान करते हुए कहा था कि राज्य में बीजेपी सरकार बनते ही समान नागरिक संहिता को लागू करने का काम प्राथमिकता पर किया जाएगा। यही बात उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ से पहले और बाद में भी दोहराई थी। धामी ने कहा था कि, वो सभी वादे पूरे किए जाएंगे जो चुनाव के दौरान बीजेपी ने किए थे, इसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड भी शामिल है।चंद्रशेखर तिवारी कहते हैं कि क्योंकि अब तक भारत सरकार की तरफ से इस मामले में कोई कानून नहीं बनाया गया है लिहाजा, कोई भी राज्य सरकार अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस कानून को बना सकती है। वह कहते हैं कि यदि भारत सरकार की तरफ से इस कानून को बाद में बनाया जाता है तो राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून को उसमें मर्ज कर दिया जाएगा, लेकिन जब तक केंद्र इस कानून को नहीं बनाता राज्य अपने हिसाब से इस कानून को बना सकता हैं।मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता आया है विरोध: इस मामले में यह भी कहा जाता रहा है कि इससे धर्म विशेष के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन हो सकता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध किया जाता रहा है। इस मामले में समुदाय विशेष पर कानून ठोकने की बात कही जाती रही है। इसमें यह भी कहा गया कि अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का इससे हनन होगा। एक धर्म विशेष के कानूनों को बाकी धर्मों पर थोप दिया जाएगा।वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव कहते हैं कि समान नागरिक संहिता किसी भी धर्म के अधिकारों पर कोई भी हनन नहीं कर सकती। ऐसा इसलिए क्योंकि इसका निर्धारण करने से पहले इस पर पूरा विचार और राय ली जाएगी। लिहाजा, किसी को भी इस पर किसी तरह का कोई संशय नहीं होना चाहिए।उधर, गोवा में पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। इसको लेकर भी अलग-अलग बात कही जाती है। बताया जाता है कि 1961 से ही गोवा में इसे लागू कर दिया गया था, जबकि इसके बाद गोवा भारत का हिस्सा बना था। लिहाजा, यह कानून यहां पहले से ही लागू है।गौर हो कि, पुष्कर सिंह धामी ने चुनाव से पहले बड़ा ऐलान करते हुए कहा था कि राज्य में बीजेपी सरकार बनते ही समान नागरिक संहिता को लागू करने का काम प्राथमिकता पर किया जाएगा। यही बात उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ से पहले और बाद में भी दोहराई थी। धामी ने कहा था कि, वो सभी वादे पूरे किए जाएंगे जो चुनाव के दौरान बीजेपी ने किए थे, इसमें यूनिफॉर्म सिविल कोड भी शामिल है।चंद्रशेखर तिवारी कहते हैं कि क्योंकि अब तक भारत सरकार की तरफ से इस मामले में कोई कानून नहीं बनाया गया है लिहाजा, कोई भी राज्य सरकार अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस कानून को बना सकती है। वह कहते हैं कि यदि भारत सरकार की तरफ से इस कानून को बाद में बनाया जाता है तो राज्य सरकार द्वारा बनाए गए कानून को उसमें मर्ज कर दिया जाएगा, लेकिन जब तक केंद्र इस कानून को नहीं बनाता राज्य अपने हिसाब से इस कानून को बना सकता हैं।मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड करता आया है विरोध: इस मामले में यह भी कहा जाता रहा है कि इससे धर्म विशेष के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का हनन हो सकता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध किया जाता रहा है। इस मामले में समुदाय विशेष पर कानून ठोकने की बात कही जाती रही है। इसमें यह भी कहा गया कि अनुच्छेद 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का इससे हनन होगा। एक धर्म विशेष के कानूनों को बाकी धर्मों पर थोप दिया जाएगा।वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव कहते हैं कि समान नागरिक संहिता किसी भी धर्म के अधिकारों पर कोई भी हनन नहीं कर सकती। ऐसा इसलिए क्योंकि इसका निर्धारण करने से पहले इस पर पूरा विचार और राय ली जाएगी। लिहाजा, किसी को भी इस पर किसी तरह का कोई संशय नहीं होना चाहिए।उधर, गोवा में पहले से ही यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। इसको लेकर भी अलग-अलग बात कही जाती है। बताया जाता है कि 1961 से ही गोवा में इसे लागू कर दिया गया था, जबकि इसके बाद गोवा भारत का हिस्सा बना था। लिहाजा, यह कानून यहां पहले से ही लागू है।