ऋषिकेश- देहरादून द फोकस आई। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेललाइन का अधिकांश निर्माण कार्य 2024 तक पूर्ण होने की व्यापक सम्भावनाएं हैं।
दो घंटे बीस मिनट में अब कर्णप्रयाग से ऋषिकेश पंहुचा जा सकेगा। ऋषिकेश से कर्णप्रयाग रेल परियोजना में अब और तेजी आनी तय है, केंद्रीय बजट में रेल परियोजना के समयबद्ध निर्माण के लिए केंद्र सरकार से वित्तीय वर्ष 2021-22 में 4,200 करोड़ रुपये मिले थे। टिहरी जनपद में व्यासी, देवप्रयाग के निकट स्थित सोड गांव, श्रीनगर के निकट मलेथा, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग के निकट खांकरा तथा चमोली के गौचर एवं सिवाई में तेजी से बन रहे रेलवे स्टेशनों के कार्य 2024 तक सम्पन हो जाऐंगे, उत्तराखंड के चारों धामों तक इस रेल लाईन को पंहुचाने की योजना पर भी तेजी से कार्य चल रहा है। सारे फाईनल सर्वेक्षण पूरे हो चुके हैं। इस परियोजना से सबसे अधिक लाभ हमारी सीमाओं पर नियत सैनिकों को होगा, इस परियोजना से सबसे अधिक लाभ हमारी सीमाओं पर नियत सैनिकों को होगा, सीमा पर किसी सहायता की आवश्कता होती है तो इस रेलवे लाइन से उन्हें शीघ्र पहुंचाई जा सकेगी। पहाड़ों की दुर्गम भौगोलिक स्थिति में सड़क मार्ग से वहां शीघ्र सहायता पहुंचना संभव नहीं हो पाता, एक तरह से यह रेल हमारी सीमा सुरक्षा की गारंटी बनेगी। यही नहीं आम जन मानस को इसका निरंतर लाभ भी मिलेगा, अभी तक छोटे छोटे उधोग उत्तराखंड मे इस लिए विकसित नहीं हो पाते कि माल ढुलान अधिक लगता है, रेल आने से ये समस्या भी बड़ी सीमा तक दूर हो जाएगी, इसके बाद आता है पर्यटन, जो रोजगार का सबसे बड़ा साधन है पर्यटन उद्योग में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होगी कुल मिला कर ये उत्तराखंड मे रेल नहीं विकास का नया दौर आ रहा है, बाहर शहरो मे बैठ कर बोलना आसान है कि पहाड़ो को नुकसान हो रहा है, पर जो लोग गांवों में है उनसे पूछिये इन सुविधाओं के अभाव में उनकी क्या स्थिति रहती है। रेल मार्ग का कार्य तेजी से संपन्न हो इसके लिए जन सहयोग की अब बारी है। जमीन सम्बंधी भुक्तान निबटाने में अधिकारी गण कास्तकारों का सहयोग करें और भूमि विवाद तत्क्षण हल करें, नहीं तो भारत में पलने वाले चीन के चाटुकारों को इस रेल लाइन में व्यवधान का अवसर मिल सकता है वे रेलवे लाइन निर्माण में आन्दोलन या आदि अनेक तरह से व्यवधान डाल सकते हैं। काठ गोदाम बागेश्वर रेल परियोजना पर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देशन के बाद अब तेजी आ सकती है। ये रेल परियोजनाएं नहीं उत्तराखंड की लाईफ लाईनें बन रही हैं।