कोरोना महामारी के बीच ब्लैक फंगल इन्फेक्शन चर्चा में है. ब्लैक फंगल इन्फेक्शन के बढ़ते मामलों ने आम आदमी से लेकर सरकार तक की चिंताएं बढ़ा दी हैं. कोरोना से लड़ने के लिए इस्तेमाल में लाई जा रही स्ट्राइट्स का परिणाम है ब्लैक फंगल.
दरअसल, यह दवा उन मरीजों को भी दी गई जिन्हें इसकी जरूरत नहीं थी, नतीजे के रूप में नई बीमारी सामने आ गई.
एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया ने इस पर बड़ी जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि ब्लैक फंगल बढ़ने का सबसे बड़ा कारण स्टेरॉयड्स का ज्यादा इस्तेमाल है. स्टेरॉयडस का इस्तेमाल बढ़ाया गया तभी जाकर ब्लैक फंगल के इतने मामले सामने आ रहे हैं.
कोरोना संक्रमण से पहले इस के मामलों में कमी थी लेकिन कोरोना के बाद से काफी तेजी आई है. पहले यह बीमारी हाई शुगर लेवल वालों, डायबिटीज अनकंट्रोल, रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी या फिर कैंसर के पेशेंट जोकि कीमोथेरेपी करा रहे हैं, उन में पाई जाती थी.
बता दें कि एम्स में फिलवक्त ब्लैक फंगल के 23 मरीजों का इलाज चल रहा है जिनमें से 20 केवल कोरोना से संक्रमित हैं. उनकी रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आई है. देश के कई राज्यों में ब्लैक फंगल के 500 से अधिक मामले सामने आए हैं.
डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने स्टेरॉयड्स के दुरुपयोग को ब्लैक फंगल इंफेक्शन का प्रमुख कारण माना है. उन्होंने सलाह दी कि स्टेरॉयड का इस्तेमाल उन मरीजों को नहीं करना चाहिए जिनका ऑक्सीजन लेवल ठीक है. जिन्हें गंभीर समस्या नहीं है उन्हें इसके इस्तेमाल से बचाना चाहिए और बहुत जरूरत की स्थिति में कम मात्रा में इसका उपयोग करना चाहिए.
एमस के ही नहीं अन्य डॉक्टरों का भी मानना है कि स्टेरॉयड का इस्तेमाल केवल अति आवश्यक होने पर ही किया जाना चाहिए जैसे कि कोविड-19 से संक्रमित मरीजों में को ही सीमित मात्रा में दिया जाए और वो भी जब सांस लेने में दिक्कत हो तब इसे आवश्यकतानुसार मरीज़ को दिया जाए l