उत्तराखंड : प्रदेश के 18 अशासकीय महाविद्यालय के शिक्षक तथा शिक्षेणत्तर कर्मचारियों ने लंबित मागों को लेकर किया धरना प्रदर्शन

उत्तराखंड के सहायता प्राप्त 18 अशासकीय महाविद्यालय के शिक्षक, शिक्षणेत्तर कर्मचारी विगत लंबे समय से अंब्रेला अधिनियम में पूर्ण सुधार समेत तमाम मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ लामबंद है। लेकिन सरकार द्वारा अभी तक कोई भी कार्यवाही न किए जाने की वजह से इन अशासकीय कॉलजों शिक्षक तथा शिक्षेणत्तर कर्मचारियों ने आज शनिवार को फिर सरकार के खिलाफ अंब्रेला अधिनियम में पूर्ण सुधार समेत तमाम मांगों को लेकर अपने-अपने महाविद्यालयों में कोविड-19 के नियमों का पालन करते हुए धरना प्रदर्शन किया।

गौरतलब है अम्ब्रेला एक्ट में सरकार की ओर से परिवर्तन किए जाने के संदर्भ में शिक्षक व शिक्षणेत्तर कर्मचारी संघर्षरत हैं। जिसमें उन्होंने राज्यपाल महोदया, मुख्यमंत्री, मंत्री गण तथा सांसदों एवम् सचिवों को भी अपने ज्ञापन दिए हैं, परंतु सरकार के स्तर पर अभी भी किसी प्रकार की कार्यवाही ना होने के कारण और अभी तक ढीला रवैया अपनाने के कारण भारी संख्या में शिक्षकों ने जुट कर अपने उद्बोधन में सरकार से शिक्षकों तथा कर्मचारियों के प्रति नीतियों को 1973 के एक्ट के अनुसार, उदार रुख के साथ ही सरकार के द्वारा लाए गए अंब्रेला अधिनियम में पूर्ण सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रदर्शन करने की मुख्य वजह : इन अशासकीय कॉलजों पर उच्च शिक्षा अधिनियम 1973 के तहत अनुदान राशि प्राप्त होती है। जिससे टीचर्स व नान टीचिंग स्टॉफ की सैलरी दी जाती है। इन कॉलेज में आज भी छात्रों को एक माह में 15 रुपये फीस पर उच्च शिक्षा दी जा रही है। अब सरकार ने इस अधिनियम में संशोधन कर अनुदान के बदले प्रोत्साहन राशि देने का निर्णय लिया है। कॉलेज संचालित करने के लिए छात्रों से फीस बढ़ाने को मजबूर होना पड़ेगा। जिससे शिक्षक व छात्र आक्रोशित है।

इस अवसर पर ग्रुटा के महामंत्री डॉ. डी. के. त्यागी फूटा के महासचिव डॉ. यू. एस. राणा, राजेश पाल, डॉ एच बी एस रंधावा, डॉ पंत, डॉ जयपाल,डॉ जीपी डग, डॉ सुमंगल, डॉ एस पी जोशी, डॉ मनोज जादौन, डॉ देवना शर्मा, डॉ अतुल सिंह, , डॉ विवेक त्यागी, डॉ रवि दीक्षित, डॉ जस्सल शिक्षणेत्तर कर्मचारी संघ के अध्यक्ष गजेंद्र सिंह व सचिव धीरज कोटनाला आदि सहित बड़ी भारी संख्या में शिक्षक तथा शिक्षकों तथा कर्मचारी उपस्थित रहे। प्रदेश के संगठनों की शक्ति तथा शिक्षणेत्तर कर्मचारियों के इस चरण को छात्र संगठनों ने भी अपना समर्थन दिया।

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