गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के अधीन आने वाले सशस्त्र बलों के जवानों के पेंशन लाभ में विसंगतियों और भेदभाव को दूर करने के लिए एक याचिका उच्चतम न्यायालय में दायर की गयी है। भारतीय जनता पार्टी नेता एवं पेशे से वकील अजय अग्रवाल ने ‘हमारा देश, हमारे जवान ट्रस्ट’ की तरफ से यह याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है, ‘‘केंद्र सरकार गृह मंत्रालय के तहत आने वाले और एक जनवरी 2004 के बाद सेवा में आने वाले सशस्त्र बल के कर्मियों के लिए हाइब्रिड पेंशन योजना लागू कर रही है, जो पुरानी और नयी पेंशन योजना का मिश्रण है, लेकिन यह नयी अंशदायी पेंशन योजना केंद्र सरकार के सशस्त्र बलों पर लागू नहीं होती है।’’ याचिका के अनुसार, गृह मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों के लिए छह अगस्त, 2004 को स्पष्टीकरण जारी किया गया था कि ये सभी गृह मंत्रालय के तहत ‘केंद्र’ के सशस्त्र बल हैं। इनमें सशस्त्र सीमा बल, आईटीबीपी, सीमा सुरक्षा बल, असम राइफल्स, सीआरपीएफ, सीआईएसएफ तथा एनएसजी शामिल हैं। याचिका में कहा गया है कि गृह मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों के प्रत्येक जवान पुरानी योजना के तहत पेंशन पाना चाहते हैं, लेकिन केंद्र सरकार कोई कार्यवाही नहीं कर रही है और इस प्रकार गृह मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों के साथ भेदभाव हो रहा है।
श्री अग्रवाल ने आगे कहा है कि बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी और असम रायफल्स दिन रात हमारी सीमाओं की रक्षा करते रहते हैं और रक्षा करते हुए आये दिन इनके जवान वीरगति को प्राप्त होते हैं| याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत के कई निर्णयों का हवाला देते हुए कहा है कि पेंशन इन सशस्त्र बलों का अधिकार है और सेवानिवृत्ति के बाद जीवन की संध्या में एक सम्मानित एवं गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए यह बेहद जरूरी है| याचिका में कहा गया है कि कई बार आवेदन देने के बावजूद सरकार ने कुछ भी नहीं किया है, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय, गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले सशस्त्र बलों के प्रति विसंगति एवं भेदभाव को समाप्त करते हुए उनके लिए भी वही पुरानी पेंशन योजना को बहाल करें, जो रक्षा मंत्रालय के अधीन सशस्त्र बलों के लिए मान्य की गयी है|