जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के लिए 10 हजार पेड़ काटे जाने हैं, जिसको लेकर सामाजिक संगठनों और कई युवाओं द्वारा पेड़ों को काटे जाने का विरोध किया जा रहा है। वहीं अब इस मामले के बाबत मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि एयरपोर्ट विस्तारीकरण मामले में कुछ लोग नकारात्मक राजनीति कर रहे हैं, एयरपोर्ट विस्तारीकरण का महत्व केवल पर्यटकों से ही नहीं है बल्कि एयरपोर्ट का महत्व राष्ट्रीय ओर सुरक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि अगर जौलीग्रांट एयरपोर्ट विस्तारीकरण में पेड़ कटते हैं तो उनकी जगह 3 गुना पेड़ लगाने की व्यवस्था की जाती है, ऐसे लोग सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए ही नकारात्मक राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह एक षड्यंत्र के तहत किया जा रहा है।
गौरतलब है, जौलीग्रांट एयरपोर्ट विस्तारीकरण के लिए उत्तराखंड वन विभाग और उत्तराखंड सरकार ने शिवालिक ऐलिफेंट रिज़र्व की 243 एकड़ वन भूमि को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) को देने का फैसला लिया है। जिसके कारण थानों वन क्षेत्र में अलग-अलग प्रजातियों के कुल 9745 पेड़ काटे जाएंगे। इन पेड़ों में शीशम (2135), खैर (3405), सागौन (185), गुलमोहर (120) सहित 25 अन्य प्रजातियां शामिल हैं। इन्हीं पेड़ों को कटने से बचाने के लिए कुछ सामाजिक संगठन और युवा कई दिनों से विरोध कर रहे हैं। इन सबका मानना है, इस जंगल के आसपास हाथी, गुलदार, चीतल, सांभर, जंगली भालू, बंदर, लंगूर जैसे जानवरों का वास स्थल है। ये भी कहा गया है कि ये जगह वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत इको सेंसेटिव ज़ोन के दस किलोमीटर के दायरे में आता है। इसलिए इसे भी इको सेंसेटिव ज़ोन की तरह ही ट्रीट किया जाना चाहिए। विरोध करने वालों का कहना है कि जहां पेड़ काटे जा रहे है, राजाजी नेशनल पार्क के 10 किलोमीटर के दायरे में आने के साथ शिवालिक एलिफेंट रिजर्व का हिस्सा है। एलिफेंट कॉरिडोर यहां से तीन किलोमीटर के रेडियस में है। यहां खासतौर पर हाथी समेत अन्य वन्यजीवों की आवाजाही होती है। इसलिए एयरपोर्ट का विस्तारीकरण मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ावा दे सकता है और इसका देहरादून के इको सिस्टम पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।