स्पिंड विवाह पर आया दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला।

26 फरवरी। दुनियाभर में शादियों की अलग अलग प्रथाएं , मान्यताएं और रिवाज़ है।
भारत में भी हर धर्म सम्प्रदाय में शादियों की रोचक और पृथक मान्यतायें हैं। इसी में एक है सपिण्ड शादी जिसकी चर्चा इन दिनों सुर्खियां बन रही है क्या आपने सुना है क्या है ‘सपिंड विवाह’, जिसकी मान्यता का मामला दिल्ली हाई कोर्ट पहुंचा, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। ऐसे में ‘सपिंड विवाह’ और इसके पीछे की परम्परा के बारे में जानना ज़रूरी है।
इस विवाह की चर्चा क्यों हो रही है।
स्पिंड विवाह।।।।
भारतीय संविधान के अनुसार देश की जनता को कुछ मौलिक अधिकार दिए गए हैं। इन्हीं में से एक अधिकार शादी है, जिसका मतलब बै कि लड़का और लड़की अपनी पसंद से शादी कर सकते हैं। इसमें जाति, धर्म और अन्य किसी भी तरह का भेदभाव बाधा नहीं बन सकता, लेकिन भारतीय समाज में कुछ रिश्ते ऐसे भी हैं जिनमें शादी नहीं हो सकती और ऐसे ही वैवाहिक रिश्ते सपिंड विवाह कहते हैं। सपिंड यानि एक ही कुल या खानदान के वे लोग जो एक ही पितरों का पिंडदान करते हैं। आपको बता दें कि 22 जनवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला की उस याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें उसने हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 5(V) को असंवैधानिक बता रही थी। सबसे पहले जानिए हिंदू मैरिज एक्ट का प्रावधान दरअसल, हिंदू मैरिज एक्ट 1955 की धारा 5(V) धारा दो हिंदुओं को आपस में शादी करने से रोकती है।
सपिंड विवाह क्या होता है?
आपको बता दें कि सपिंड विवाह उन दो लोगों के बीच होता है जो आपस में खून के बहुत करीबी रिश्तेदार होते हैं। धारा 3(f)(ii) के मुताबिक अगर दो लोगों में से एक दूसरे का सीधा पूर्वज हो और वो रिश्ता सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, या फिर दोनों का कोई एक ऐसा पूर्वज हो जो दोनों के लिए सपिंड रिश्ते की सीमा के अंदर आए, तो दो लोगों के ऐसे विवाह को सपिंड विवाह कहा जाएगा। हिंदू मैरिज एक्ट के हिसाब से, एक लड़का या लड़की अपनी मां की तरफ से तीन पीढ़ियों यानि भाई-बहन, मां-बाप, दादा-दादी तक किसी से शादी नहीं कर सकता है। पिता की तरफ से ये पाबंदी पांच पीढ़ियों तक लागू होती है। यानी आप अपने दादा-परदादा आदि जैसे दूर के पूर्वजों के रिश्तेदारों से भी शादी नहीं कर सकते। बता दें कि ये पाबंदी इसलिए लगाई गई है ताकि करीबी रिश्तेदारों के बीच शादी से शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा होने से रोकी जा सके।

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