सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल ने महत्वाकांक्षी चार धाम सड़क परियोजना के तहत उत्तराखंड के पर्वतीय ढालों पर ‘‘बेतरतीब तरीके से जारी खुदाई’’ के खिलाफ चेतावनी दी और कहा है कि यह एक बहुत बड़ी गलती साबित होगी। उत्तराखंड में चार धाम यात्रा के लिये बारह महीने सड़क संपर्क उपलब्ध कराने के उद्देश्य से करीब 900 किमी सड़क का निर्माण किया जाना है, जिसकी आधारशिला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2016 में रखी थी। परियोजना के पर्यावरणीय पहलू पर गौर करने के लिये गठित समिति के दो वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि खुदाई अवैज्ञानिक तरीके से की जा रही है। समिति के अध्यक्ष ने कहा कि लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी), सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) तथा राष्ट्रीय राजमार्ग एवं आधारभूत ढांचा विकास निगम लिमिटेड (एनएचआईडीसीएल) बहुत ही गैर जिम्मेदाराना तरीके से अपना काम कर रहे हैं।
समिति के अध्यक्ष रवि चोपड़ा ने कहा , ‘‘उन्होंने खतरनाक पर्वतीय ढालों की पहचान करने, परियोजना के तहत मलबा हटाने की उपयुक्त व्यवस्था के बाद पहाड़ को काटे जाने, फुटपाथ बनाने और सड़क के किनारे पौधे लगाने के हमारे सुझावों की अनदेखी की है।’’ उन्होंने कहा कि पर्वतीय ढाल पर चट्टानों को काटने का कार्य गैर जिम्मेदाराना तरीके से किया जा रहा है, मलबा नीचे वन, खेत और मकानों पर गिर रहा है। चोपड़ा के अनुसार, उपयुक्त निपटारा तंत्र का अभाव होने के चलते ऐसा हो रहा है। समिति ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा उच्चतम न्यायालय को जुलाई में अपनी सिफारिशें सौंपी थी ताकि परियोजना के क्रियान्वयन में हो रही गलतियों को ठीक किया जा सकते। समिति के सदस्य एवं भूगर्भ वैज्ञानिक नवीन जुयाल ने कहा, ‘‘परियोजना के तहत खुदाई अवैज्ञानिक तरीके से की जा रही है। इस कार्य में पर्वतीय क्षेत्र की भूगर्भीय संरचना को ध्यान में नहीं रखा जा रहा है। ’’ उन्होंने कहा कि यदि पर्वतीय ढालों की इस कदर खुदाई की जाएगी तो यह पूरी घाटी को भूगर्भीय रूप से अस्थिर कर देगी, जो पहले से भी भूकंप, अचानक बाढ़ आने और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिये संवेदनशील है। जुयाल ने कहा, ‘‘विशेषज्ञों के सुझावों की अनदेखी करते हुए जिस तरह से परियोजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है, वह निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी गलती होगी। ’’ उन्होंने कहा कि चार धाम यात्रा के लिये बारहमासी संपर्क मुहैया करने के लिये जो सड़क बनाई जा रही है वह आपदा संभावित होगी और भूस्खलन का एक नया क्षेत्र होगी। उन्होंने अवैज्ञानिक तरीके से भूस्खलन के कम से कम चार संभावित क्षेत्र निर्मित कर दिये जाने का जिक्र किया। जुयाल ने कहा कि एक आधिकारिक अनुमान के मुताबिक, परियोजना के क्रियान्वयन के लिये कम से कम 50,000 पेड़ काटे जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि एक और खामी यह है कि इसे (परियोजना को) 53 छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा गया है ताकि पर्यावरण प्रभाव आकलन अध्ययन से बचा जा सके जो कि 100 किमी और इससे अधिक की किसी परियोजना के लिये अनिवार्य है। जुयाल और समिति के सदस्य एक अन्य वैज्ञानिक हेमंत ध्यानी ने 59 पृष्ठों की रिपोर्ट में यह चिंता प्रकट की है। यह रिपोर्ट पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को सौंपी गई है। इसका शीर्षक ‘ए डिफरेन्ट व्यू : ए हिमालयन ब्लंडर’ है। उन्होंने श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के लिये पांच फुट चौड़ा ‘अष्टपथ’ बनाने का भी सुझाव दिया है। चार धाम में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ आते हैं।