देहरादून 29 सितंबर। पिछले कई वर्षों में यदि हम अतीत में झांक कर देखें तो देश–प्रदेश में सिनेमा हॉल का एक अलग ही आयाम स्थापित था।
70–90 के दशक में सिनेमा एक अध्ययन के रूप में भी देखा जाता था. लोग सिनेमा में जाकर सिनेमैटिक तकनीक, किरदारों के अभिनय , उनकी पोशाक बातचीत का तरीका एवं उचित जानकारी देशभक्ति आदि से संबंधित हासिल कर कर देश की तरक्की में नवयुवा अपना योगदान दिया करते थे।
कालांतर में वीसीआर एवं घर-घर स्थानीय केबल कनेक्शन, केबल टीवी के माध्यम हर घर मनोरंजन के वैकल्पिक संसाधन साधन पहुंच जाने या प्राप्त हो जानेजाने के उपरांत सिनेमा हॉल की और युवाओं का रुझान कुछ काम हुआ था और पिछले कुछ समय में देखें तो डिजिटल युग के दौरान मोबाइल क्रांति आने पर सिनेमा हालों का युग लगभग समाप्त सा हो चुका था।
ऐसे में पीवीआर {इसका वास्तविक नाम [प्रिया विलेज रोडशोज] जो की विलेज रोड शोस ऑस्ट्रिया की स्थापित कंपनी है} एवं अन्य क्षेत्रों की कंपनियों ने देहरादून उत्तराखंड एवं देश के अन्य स्थान पर इस समय अपना अपना व्यवसाय स्थापित कर जिसके फल स्वरूप सिनेमा का बेहतर तकनीक से आनंद लेना आसान हो पाया।
क्योंकि इनमें से अधिकतर कंपनियां विदेशी तकनीक पर आधारित थी और विदेशों में यह तकनीक भारतवर्ष में तत्कालीन प्राप्त तकनीक से काफी आगे की हासिल हो चुकी थी उसी का अनुभव प्रदान करने के उद्देश्य से पीवीआर भी भारत में आया था और आज भी स्थापित है इसी क्रम में पीवीआर ने विगत दिवस अर्थात 28 सितंबर को देहरादून के कैंट रोड स्थित सेंट्रियो मॉल में अपने सिनेमा हॉल को एक नई तकनीक से सुसज्जित किया जिसे 4dx तकनीक कहा जाता है।
हमारे अनुभव के हिसाब से जो की कल प्रथम दिवस हमने सिनेमा हॉल में जाकर एक चलचित्र को देखा और उस तकनीक का आभास किया इस आभास के अनुभव में हमने यह पाया कि एवं साथ ही साथ यहां स्थित सिनेमा के प्रबंधक श्री नीरज गैरोला ने अपने साक्षात्कार में हमें बताया जिसपर इस तकनीक पर काफी दिनों से काम चल रहा था जो कि कल जन सामान्य के लिए उपलब्ध कराई गई है हमारा तजुर्बा और श्री नीरज गैरोला के अनुसार इसमें 4 डाइमेंशन एक्सपीरियंस कराया जाता है जिसके तहत सिनेमा में चलचित्र के दौरान यदि आंधी तूफान,हवा ,हेलीकॉप्टर के पंखुड़ियां से हवा किरदारों पर महसूस कराई जाती है तो वह उस चलचित्र को देख रहे दर्शकों को भी वहां पर हाल में स्थापित किए गए बड़े-बड़े उच्च शक्ति के पंखों के माध्यम से आभासित एवं अनुभव कराई जाती है साथ ही साथ यदि चलचित्र में बिजली की चमक जिसको बिजली कड़कना भी कहते हैं एवं बारिश दिखाई जाती है तो सिनेमा हॉल में बड़े-बड़े पंखों एवं वाटर जेट्स के माध्यम से पानी की डिपो के माध्यम से कृत्रिम बरसात का अनुभव कराया जाता है। साथ ही साथ वाइब्रेशन , गोलियों की आवाज अन्य बैकग्राउंड ध्वनियों को भी उनकी सीटों में वाइब्रेटर लगाकर एवं नियमित गतिमान कराकर आभासी कराया जाता है जिसका एक अलग ही अंदाज एवं अनुभव प्राप्त होता है उम्मीद करते हैं कि यह तकनीक प्रदेश में खास करके देहरादून में एक अलग ही सिनेमा अनुभव की क्रांति लाएगी।