आज हरेला पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने अपने आवास पर वृक्ष रोपड़ किया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेशवासियों से आह्वान किया है कि वे आज पर्व से जुड़कर एक पौधा अवश्य लगाएं। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो संदेश साझा कर लोगों से जुड़ने की अपील की।इस संदेश में उन्होंने कहा कि हरेला परंपरागत पर्व है। यह हमारे संस्कार, परंपरा और पर्यावरण के प्रति हमारे दायित्व को दर्शाता है। हरियाली के महत्व को हर कोई समझता है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के चक्र को मजबूत बनाने, जल, जमीन जंगल, स्वास्थ्य को बचाने के लिए हम पेड़ों का महत्व समझते हैं। इसलिए हमारे बुजुर्गों ने ऐसे पर्व मनाने की परंपरा शुरू की थी। हरेला पर संकल्प लें, एक पौधा जरूर लगाना है। अपने घरों में भी पौधों लगा सकते हैं।
हरेला के अवसर पर पौधे लगाने के लिए वन विभाग फ्री में पौधे देगा, लेकिन यह भी बताना होगा कि इन पौधों की सुरक्षा कैसे की जाएगी। प्रमुख वन संरक्षक के मुताबिक सरकारी दफ्तरों, स्कूल परिसर आदि में पौधे लगाए जा सकते हैं क्योंकि यहां सुरक्षा के उपाय पहले से होते हैं लेकिन अगर कोई खुले में पौध लगा रहा है तो पहले उसे बताना होगा कि पौधों को बचाने के लिए क्या किया। वहीं देहरादून जिलाधिकारी आशीष श्रीवास्तव ने बताया कि आज हरेला पर्व के अवसर पर देहरादून जनपद में 2.75 लाख पौधे रोपित करने का लक्ष्य रखा है।
क्या है हरेला पर्व?
हरेला एक हिंदू त्यौहार है जो मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में मनाया जाता है । हरेला पर्व वैसे तो वर्ष में तीन बार आता है।
पहला चैत मास में दूसरा श्रावण मास में तथा तीसरी बार वर्ष का आश्विन मास में मनाया जाता हैं |मूलतः हरियाली से जुड़े होने के कारण इसे किसानों द्वारा मनाया जाता है।इस दिन किसान अच्छी फसल की कामना करते हैं।हरेला पर्व को ऋतुपरिवर्तन का त्यौहार भी कहा जाता है।लेकिन श्रावण मास में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता तथा समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। जिस कारण इस अन्चल में यह त्यौहार अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है। श्रावण मास भगवान भोलेशंकर का प्रिय मास है, इसलिए हरेले के इस पर्व को कही कही हर-काली के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है।उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है। इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व है।