हरिद्वार । रुड़की के सिंचाई विभाग में अंग्रेज़ो के समय की बनी (निर्माण 1842) उधोगशाला की चिमनी का रास्ता एक रहस्य बनकर रह गया है। इस चिमनी का रास्ता ना मिलना अधिकारियों के लिए बड़ी चुनोती बना हुआ है हालांकि अधिकारियों ने ड्रोन की भी इस बाबत मदद ली गई लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।अब उधोगशाला के अधिकारियों ने ड्रोन कैमरों को लाईट के साथ चिमनी के अंदर उतारने का निर्णय लिया है ताकि चिमनी की सही जानकारी के साथ साथ उसके रास्ते का भी पता चल सके।अभी तक अधिकारियों को ठीक तरह से यह मालूम नही हो सका है कि उधोगशाला में अंग्रेज़ो ने चिमनी का निर्माण किस लिए कराया था।वहीं चिमनी के ऊपर दरारें आ जाने पर पुरातत्व विभाग की टीम को भी बुलाया गया है। वहीं इस बाबत उधोगशाला के अधिशासी अभियंता शिशिर गुप्ता ने बताया कि उधोगशाला को और भी बेहतर बनाने का काम चल रहा है। उधोगशाला में कितनी सुरंग हैं इसकी भी जानकारी जुटाई जा रही है।और चिमनी के बारे में भी जानकारी ली जा रही है।गौरतलब है की 1842 में अंग्रेजों ने रुड़की और कलियर गंगनहर के निर्माण के समय इस उधोगशाला का निर्माण कराया था जिसमें बेशकीमती मशीनो के साथ साथ सुरंगे और चिमनी भी बनाई गई थी लेकिन अब उधोगशाला में कितनी सुरंगे हैं चिमनी की क्या भूमिका रही है यह एक रहस्य बना हुआ है। हालांकि इस उधोगशाला मे उत्तराखंड के कई पुलों और बैराज आदि का सामान भी तैयार हुआ था। उत्तरप्रदेश के समय मे इस उधोगशाला मे काफी कार्य था लेकिन उत्तराखंड बनने के बाद किसी भी सरकार का ध्यान इस उधोगशाला पर नहीं गया और यह उधोगशाला बंदी के कगार तक पहुंच गई है।लेकिन अब अधीक्षण अभियंता संजय कुशवाहा और अधिशासी अभियंता शिशिर गुप्ता इस उधोगशाला को बेहतर बनाने की काफी कोशिश कर रहे हैं। हालांकि रुड़की में यह एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मानी जाती है जो सबसे बड़े क्षेत्रफल में फैली हुई है। लगभग 90 फीट लंबी चिमनी का रास्ता उधोगशाला के अधिकारियों को भी कहीं दूर तक भी नजर नही आ रहा है। रुड़की के सबसे बड़े क्षेत्रफल में बनी उधोगशाला पर विभाग के बड़े अधिकारियों से लेकर सरकार तक का भी कोई ध्यान नहीं है।वहीं उधोगशाला के अधिशासी अभियंता शिशिर गुप्ता कहना है कि उधोगशाला की चिमनी और सुरंगों के लिए ड्रोन कैमरे लाइट के साथ और पुरातत्व विभाग की टीम को बुलाया गया है जो अपनी रिपोर्ट देंगे।