बड़ी खबर,,, उत्तराखंड को मिला एक और नया मुख्यमंत्री,,,

देहरादून।

तीरथ सिंह रावत के सीएम पद से इस्तीफा देने के बाद प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी को चुना गया। सीएम के रेस में प्रदेश के बड़े बड़े सियासी सुरमाओं का नाम था। धन सिंह रावत, सतपाल महाराज, रमेश पोखरियाल निशंक, बिशुन सिंह चुफाल जैसे दिग्गज सीएम की रेस में आगे चल रहे थे। ऐसे में इन सबको दरकिनार करते हुए बीजेपी ने विधान मंडल की बैठक में खटीमा से विधायक पुष्कर सिंह धामी के नाम पर मुहर लगा दी है। जिसके बाद यह तय हो गया कि धामी ही प्रदेश के अगले सीएम होंगे.ऐसे में पुष्कर सिंह धामी की राजनीति सफरनामा पर एक नजर डालते हैं, जिसकी वजह से उन्हें अगला सीएम के रूप में चुना गया। पुष्कर सिंह धामी का जन्म पिथौरागढ़ के टुंडी गांव में हुआ। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अपनी उच्च शिक्षा हासिल की. धामी पोस्ट ग्रेजुएट हैं। व्यावसायिक शिक्षा में उन्होंने मानव संसाधन प्रबंधन और औद्योगिक संबंध के मास्टर डिग्री ली है। लखनऊ विश्वविद्यालय में धामी छात्र समस्याओं को उठाने के लिए जाने जाते थे. 1990 से 1999 तक वो विभिन्न पदों पर रहे। उनके खाते में लखनऊ में राष्ट्रीय सम्मेलन के संयोजक और संचालक होने की उपलब्धि दर्ज है। पुष्कर सिंह धामी यूपी के जमाने में प्रदेश महामंत्री भी रहे। उत्तराखण्ड के अति सीमांत जनपद पिथौरागढ़ की ग्राम सभा टुंडी, तहसील डीडीहाट में उनका जन्म हुआ। सैनिक पुत्र होने के नाते राष्ट्रीयता, सेवा भाव एवं देशभक्ति को ही उन्होंने धर्म के रूप में अपनाया. आर्थिक अभाव में जीवन यापन कर सरकारी स्कूलों से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। तीन बहनों के पश्चात अकेला पुत्र होने के नाते परिवार के प्रति जिम्मेदारियां हमेशा बनी रहीं। कुशल नेतृत्व क्षमता, संघर्षशीलता एवं अदम्य साहस के कारण दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सन 2002 से 2008 तक छह वर्षों तक लगातार पूरे प्रदेश में जगह-जगह भ्रमण कर युवा बेरोजगारों को संगठित करके अनेकों विशाल रैलियां एवं सम्मेलन आयोजित किए। संघर्षों के परिणामस्वरूप तत्कालीन प्रदेश सरकार से स्थानीय युवाओं को 70 प्रतिशत आरक्षण राज्य के उद्योगों में दिलाने में सफलता प्राप्त की। इसी क्रम में 2005 में प्रदेश के युवाओं को जोड़कर विधान सभा का घेराव हेतु एक ऐतिहासिक रैली आयोजित की गयी। जिसे युवा शक्ति प्रदर्शन के रूप में उदाहरण स्वरूप आज भी याद किया जाता है।

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