भारत की वैचारिक चेतना को जागृत करने के लिए प्रसिद्ध संगठन ‘प्रज्ञा प्रवाह’ द्वारा राष्ट्र प्रथम के सेवाभाव के साथ “क्षेत्रीय अभ्यास वर्ग” का आयोजन किया जा रहा है। 3 सितंबर से 9 सितंबर के मध्य होने वाले इस अभ्यास वर्ग का आयोजन प्रज्ञा प्रवाह पश्चिमी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के द्वारा किया जा रहा है, जिसमें पहले दिन की शुरुआत हिन्दू धर्म बनाम हिंदुत्व” के विषय के साथ हुई। आयोजन के पहले दिन हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के आचार्य एवं विश्वविद्यालय परिसर के निदेशक डॉ दिनेश प्रसाद सकलानी ने संबोधित करते हुए कहा कि हिंदुत्व मात्र एक शब्द नहीं, हजारों वर्षों से चली आ रही एक अमरत्वपूर्ण संरचना है। उन्होंने महान राष्ट्र भक्त एवं कर्मयोगी वीर सावरकर को उद्धृत करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जो भी इस राष्ट्र के प्रति पितृ-मातृ भक्ति भाव रखता है, वही हिंदू है । उन्होंने महात्मा बुद्ध का उदाहरण देते हुये कहा कि कर्म पर ही विश्वास रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदू एक जीवन पद्धति है । उन्होंने सी. ब्राउन द्वारा लिखित पुस्तक “द एसेंशियल टीचिंग्स ऑफ़ हिंंदुइज़म” का उदाहरण देकर भी हिंदू धर्म एवं हिंदुत्व के विषय में विस्तार से बताया साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भी समय समय पर हिंदुत्व की व्याखा पर प्रकाश डाला एवं अर्नोल्ड टॉयन्डी की पुस्तक मे भी भारतीय संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डाला।
प्रोफेसर डीपी सकलानी ने अपने संबोधन में आगे बताया कि समाज में कुछ व्यक्ति हिंदू धर्म का उपयोग स्वदेशी विश्वास प्रणाली की पहचान के लिए करते हैं। परंतु यह सर्वविदित है कि हिंदू धर्म विभिन्न विश्वास प्रणालियों, विचारों के विद्यालयों, यहां तक कि कई बार परस्पर विरोधी और विचारशील प्रक्रियाओं को समायोजित कर सकता है। “धर्माय इति धर्म” अर्थात जो हमें साथ रखता है, वह धर्म है । धर्म हमारी सभी गतिविधियों , समाज , परिवार और समुदाय के साथ ही हमारी बातचीत और यहां तक की वित्तीय प्रणाली और पेशा भी धर्म द्वारा ही निर्धारित किए जाते हैंं। धर्म भारत का सभ्यता मूलक मूल्य है। हिंदुत्व मानवता को विश्ववासियों और गैर-विश्ववासियों में विभाजित नहीं करता है। हमारा मानना है कि सभी पथ भगवान की ओर ले जाते हैं ।हम यह भी मानते हैं कि सभी जीवित और निर्जीव प्राणी ईश्वर की रचना है और सभी देवता परम वास्तविकता की अभिव्यक्ति हैं। हिंदू धर्म समाज को एकजुट करता है तो समाज को विभाजित करने और उसे हिस्सों में विभाजित करने वाला दर्शन अधर्म है।हिंदुत्व की नींंव सच्चाई और मानवता है और यह ईश्वर को साकार करने के लिए मन को तैयार करता है।यह एक कटु सत्य है कि वामपंथ और नेहरूवादी धर्मनिरपेक्षता को हिंदुत्व स्वीकार्य नहीं है, क्योंकि यह लोग समाज को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के रूप में विभाजित करते हैं और संघर्ष को बढ़ावा देते हैं। भारतवर्ष को पुनः परम वैभव की ओर ले जाने के लिए यह परम आवश्यक है कि सभी भारतवासी हिंदुत्व के विषय में भली-भांति अध्ययन करें और न सिर्फ जानकारी रखें, बल्कि हिंदू जीवन तथा परिवार पद्धति का विमर्श भी समाज के समक्ष गैरभारतीय दृष्टि की बजाय भारतीय दृष्टि से करें।
इस अवसर पर सदानंद दामोदर सप्रे, सदानंद दामोदर सप्रे, वीके सारस्वत, डॉ प्रवीण कुमार तिवारी, डॉ चैतन्य भंडारी, डॉ बीरपाल सिंह, इंजी. अवनीश त्यागी ,डॉ अंजली वर्मा, डॉ अमिता अग्रवाल, डॉ आदर्श पांडे, डॉ संजीव गुप्ता, डॉ देवेश मिश्रा, डॉ गौरव राव, डॉ जी आर गुप्ता, डॉ एस. सी. वार्ष्णेय , डॉ सूर्य प्रकाश अग्रवाल, डॉ बकुल बंसल, प्रो. सोनू द्विवेदी, डॉ रवि शरण दीक्षित, डॉ गुस्साई,प्रो. तूलिका सक्सेना, डॉ रश्मि रंजन, अनुराग विजय अग्रवाल आदि उपस्तिथ रहे।