उत्तराखंड के वरिष्ठ साहित्यकार और जनसरोकारों के लिए हमेशा से संघर्षरत त्रेपन सिंह चौहान का आज सुबह देहरादून में निधन हो गया है। वह पिछले चार सालों से एक लंबी बीमारी से जूझ रहे थे और देहरादून में उनका उपचार चल रहा था। उत्तराखंड राज्य आंदोलन समेत कई आंदोलनों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले त्रेपन सिंह चौहान का 49 वर्ष की उम्र में निधन होने से उनके साथियों समेत पूरे उत्तराखंड में शौक की लहर है। वह अपने पीछे पत्नी और दो बच्चे छोड़ गए हैं।
बता दें, त्रेपन सिंह चौहान का जन्म 4 अक्टूबर,1971 को केपार्स,बासर टिहरी गढ़वाल में हुआ था।उन्होंने डी०ए०वी० (पी०जी०) कॉलेज से इतिहास विषय में एम०ए० किया था।इसके बाद उन्होंने नौकरी करने के बजाय समाज सेवा की राह चुनी। वहीं साहित्य में रुचि होने के कारण उन्होंने लेखन का कार्य भी किया और उनके द्वारा लिखे उपन्यासों को काफी प्रसिद्धि मिली, जिसमें उत्तराखंड राज्य आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में लिखा गया उपन्यास हे ब्वारी और यमुना काफी सराही गई। इसके अलावा उन्होंने कई सारे जनगीत भी लिखे। उन्होंने उत्तराखंड राज्य आंदोलन, शराबबंदी आंदोलन, सूचना अधिकार आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्हीं के नेतृत्व में चेतना आंदोलन 1996 में शुरू हुआ।उनमें सामाज सेवा का जुनून इस कदर सवार था कि बीमार होने के बावजूद अपने अंतिम समय तक समाज के उत्थान लिए काम करते रहे।
बताते चलें कि श्री चौहान के अंतिम दिनों में उनकी ऐसी स्थिति थी कि उनके हाथ, पैर तक काम करना बंद कर चुके थे, लेकिन उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी और न्यूरोलोजिकल से जूझने के बावजूद लेखन जारी रखा। जब उनके हाथों ने भी काम करना बंद कर दिया तो उन्होंने बोलकर लिखना शुरू किया और जब उनसे बोला भी नहीं गया तो उन्होंने फिर भी हार नहीं मानी और आंखों की पुतलियों के सहारे लिखने वाले सॉफ्टवेयर की मदद से अपने पांचवें उपन्यास को पूरा लिख रहे थे।