उत्तराखंड हाई कोर्ट में विवादित पंकज पांडे (भारतीय प्रशासनिक सेवा) कि आज कुछ मामलों में सुनवाई..

देहरादून / नई दिल्ली सूत्र : सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पूर्व में राष्ट्रीय राजमार्ग घोटाले के आरोपी एवं कई सारे अन्य मामलों में प्रसिद्ध विवादित पंकज पांडे (भा० प्र० से०) की जांच अब केंद्रीय विजिलेंस विभाग को सौंपी गई है । आपको बता दें कि IAS पंकज पांडे पर पूर्व में एनएच घोटाले के आरोप लगे थे जिसम तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने उनका निलंबन किया था तथा इस मामले में पंकज पांडे हाई कोर्ट तक जमानत लेने गए थे ।अभी हाल ही में पंकज पांडे का नाम उत्तराखंड के सोशल मीडिया में सुनामी की तरह आया था जब उनकी पत्नी को देखने डा निधि उनियाल को उनके घर भेजा गया था और उनकी पत्नी और डा निधि उनियाल का विवाद हो गया था तब उन्होंने अपनी पत्नी के नाराज होने पर डा निधि उनियाल का स्थानांतरण हाथो हाथ अल्मोड़ा कर दिया था जिस पर डा. निधि उनियाल ने इस्तीफा दे दिया था । सोशल मीडिया, और समाचारों में ये खबर आने के पाश्चात्य इसकी खबर मुख्यमंत्री तक पहुंची और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने तत्काल डा निधि उनियाल के स्थानांतरण को निरस्त किया था और अपर मुख्य सचिव मनीष पंवार को इस विषय में जांच सौंप दी थी ।वही पहले श्री देव सुमन का नाम बदनाम करने वाले श्री देव सुमन सुभारती मेडिकल कॉलेज जिसपर 300 एम बी बी एस के छात्रों के 2 साल एवं भविष्य खराब करने के आरोप में उत्तराखंड सरकार ने 97 करोड़ रुपए की पेनल्टी लगाई हुई है और अब गौतम बुद्ध के नाम से पुनः गौतम बुद्ध चिकित्सा महाविद्यालय के नाम से मैदान में है, को पंकज पांडे द्वारा राज्य स्तरीय कमेटी ,निदेशक चिकित्सा शिक्षा , सचिव चिकित्सा शिक्षा अमित सिंह नेगी की रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए 72 करोड़ की सुभारती की वर्तमान में देनदारी होते हुए भी 100 रुपए के स्टांप पर शपथ पत्र लेकर बिना हाई पावर कमेटी की बैठक हुए पुनः एमबीबीएस कोर्स खोलने के लिए भारी राजस्व एवं वित्तीय लेन देन की अनियमित्ताए होते हुए भी प्रमाण पत्र जारी कर दिया ।उक्त प्रकरण की शिकायत पी एम ओ को की गई थी जिसपर DOPT , भारत सरकार द्वारा मुख्य सचिव उत्तराखंड को पिछले साल अगस्त 2021 में निर्देशित किया गया था परंतु कई आरटीआई लगाने के बाद भी मुख्य सचिव स्तर से कोई पुख्ता सूचना प्राप्त नहीं हुई ।पिछले माह सचिवालय से ज्ञात हुआ की उक्त DOPT, PMO से प्राप्त जांच को पंकज पांडे की ही अधीनस्थ अपर सचिव सोनिका को दी गई थी जिन्होंने 3 माह बाद उक्त जांच को यह कहते हुए लौटा दिया था की वे अपने से सीनियर अधिकारी की जांच नही कर सकती और वो भी उनके ही विभाग के सचिव ।तत्पश्चात राज्य सतर्कता विभाग के सचिव अरविंद सिंह हयांकी की और से जारी पत्र में सीधे पंकज पांडे से ही स्पष्टीकरण मांगा गया था जो अभी तक लंबित चला आ रहा है ।जनता के मन में तभी से यह प्रश्न चला आ रहा था कि भला कौन खुद कहेगा की मैं गलत हूं ?इसके चलते सारे प्रकरण पर पत्रावली तैयार कर माननीय प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई जिसपर माननीय प्रधान मंत्री कार्यालय द्वारा अब यह प्रकरण केंद्रीय विजिलेंस विभाग को सौंप दिया गया है ।वहीं आज माननीय उच्च न्यायालय नैनीताल में भी पंकज पांडे की एक अन्य जांच के संबंध में जो अभी हाल ही में 4 अप्रैल को 2022 को फिर उनके अधीनस्थ अपर सचिव अरुणेद्र सिंह चौहान की अध्यक्षता में उनके ही विभाग के वही अफसर जो पहले जांच करने को मना कर चुके थे,को ही सौंप दिए जाने के संबंध में दायर याचिका की सुनवाई माननीय जस्टिस शरद शर्मा की एकल पीठ में होनी है जिसमे वादी की ओर से पैरवी नैनीताल हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मेंद्र बर्थवाल कर रहे हैसीधी सी बात है कि वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की जांच एक सब इंस्पेक्टर या दरोगा कैसे कर सकता है । दूसरा विवादित सुभारती प्रकरण में विभिन्न न्यायालयो में ट्रस्ट एवम संपति के बाद लंबित है तो ऐसी क्या जल्दी थी कि सब रिपोर्ट /जांच दरकिनार कर एक दिन में अनिवार्यता प्रमाण पत्र जारी कर दिया जबकि स्वयं राज्य सरकार ही सुप्रीम कोर्ट में अपने अपर महाधिवक्ता के माध्यम से शपथ पत्र दे चुकी है कि ट्रस्ट,संपति स्वामित्व एवम प्रकरण विवादित है एवम पूर्व में भी छात्रों को इन्ही अनियमिततओ के चलते राज्य के मेडिकल कॉलेजों में शिफ्ट करना पड़ा और राज्य सरकार पर बोझ बढ़ा पर 72 करोड़ की धनराशि अभी तक नही मिली क्योंकि पंकज पांडे जैसे अधिकारी 100 रुपए के स्टांप पर शपथ पत्र लेकर राजस्व वसूलने की बजाय मामला ठंडा कर देते हैं और कर्मचारियों को तनखा देने के पैसे कई बार सरकार पर नहीं होते और राज्य कितने कर्जे में है यह सबको पता है , यही मुख्य मामला है ।वही धन सिंह रावत विभागीय मंत्री 2017 से मामला मीडिया में उठने के बाद से शांत है और उनकी जानकारी में आने के बाद भी उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया जिसके चलते 300 छात्रों के 2 वर्ष खराब हुए और राज्य सरकार पर उन्हें शिफ्ट करने में इतना बोझ झेलना पड़ा और विभागीय मंत्री होते हुए भी अब तक 72 करोड़ वसूलने की कोई प्रक्रिया या तेजी नही दिखाई या न्यायालय में कोई अर्जी लगाई है।

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