उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को त्रिवेंद्र सरकार को झटका देते हुए शिवालिक हाथी रिजर्व की अधिसूचना रद्द (डिनोटिफाई) करने संबंधी कदम पर रोक लगा दी है। साथ ही केन्द्र एवं राज्य सरकारों के साथ साथ वन्य जीव बोर्ड तथा जैव विविधता बोर्ड को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है। मुख्य न्यायाधीश आर एस चौहान और न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की युगलपीठ ने देहरादून के पर्यावरण प्रेमी रेणु पाल की ओर से दायर जनहित की सुनवाई के बाद यह रोक लगायी है। याचिकाकर्ता की ओर से एक जनहित याचिका दायर कर सरकार के 24 नवम्बर, 2020 के निर्णय को चुनौती दी गयी है।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि देश में वर्ष 1993 में प्रोजेक्ट एलीफेंट के तहत 11 एलीफेंट रिजर्व अधिसूचित (नोटिफाई) किये गये थे। जिनमें उत्तराखंड का शिवालिक एलीफेंट रिजर्व भी शामिल था। छह जिलों में फैले इस ऐलीफेंट रिजर्व को सरकार ने 24 नवम्बर, 2020 को डिनोटिफाई करने का निर्णय लिया है। सरकार की ओर से कहा गया कि एलिफेंट टाइगर रिजर्व अधिसूचित करने के पीछे कोई विधिक प्रावधान नहीं था और राज्य में हाथियों की संख्या में वृद्धि हुई है।
याचिकाकर्ता की ओर से सरकार के निर्णय का विरोध करते हुए अदालत को बताया गया कि यह कदम गलत है। हाथी समूह में चलने और लम्बी दूरी तय करने वाले जानवर हैं। इसलिये एलीफेंट रिजर्व संबंधी अधिसूचना को रद्द करने का सरकार का निर्णय सही नहीं है। याचिकाकर्ता की ओर से इस मामले में उच्चत न्यायालय के इसी साल 24 नवम्बर 2020 के आदेश का भी हवाला दिया गया जिसमें उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे की अगुवाई वाली तीन जजो की पीठ ने हाथियों के संरक्षण पर जोर देने की बात कही है। याचिकाकर्ता के वकील अभिजय नेगी ने बताया कि मामले को सुनने के बाद अदालत ने सरकार के निर्णय पर रोक लगा दी है और सभी पक्षकारों से जवाब दाखिल करने को कहा है।