देहरादून 13 जून। पुराने समय में हमने देखा सुना और पढ़ा है कि की कई दार्शनिक ब्रह्मांड पर निकला करते थे ऐसा ही एक व्यक्ति हमें मिला जो कोलकाता से पिछले 13 मार्च को निकाला है।
पदयात्रा करता देवभूमि उत्तराखंड में पहुंचा है।
लगभग 3500 किलोमीटर की पदयात्री ने करी है।
अपनी इस पदयात्रा के शुरुआती चरण मेंशुरू वह अपने साथ खाना पकाने का साजो समान साथ लेकर चला था, मन किया तो कुछ पका कर खा लिया,, नहीं तो किसी ने दे दिया खा लिया,, कुछ कभी खरीद के खा लिया और बोझ बढ़ाने की वजह से इसने उसे समान को भी त्याग दिया ताकि यात्रा सुखमय हो।
इसी यात्रा के दौरान यह उत्तराखंड देवभूमि पहुंचा जहां पर बद्रीनाथ आदि धर्मों की यात्रा के बाद देहरादून के ऋषि पारणा पुल पर पहुंचा जहां पर हमारा उसके साथ साक्षात्कार हुआ।
उसने बताया कि उसका नाम अबीर भट्टाचार्य है और वह पश्चिम बंगाल से होते हुए बनारस, गया, श्री राम जन्मभूमि अयोध्या, काशी विश्वनाथ ,काशी नगरी होते हुए उत्तराखंड देवभूमि पहुंचा है।अपने यहां के चार दिन के प्रवास के बाद इसका आगे का लक्ष्य है हिमाचल होते हुए लेह में जाना। लेह में एक सामाजिक कार्यकर्ता से मुलाकात के बाद ही इसका यह सफर पूर्ण होगा जो कि लगभग 4500 किलोमीटर का सफर होने वाला है, इस पदयात्री का कहना है कि उसको अचानक एक दिन ऐसा महसूस हुआ कि हम सब अपने-अपने परिवारों में सुख सुविधाओं के साथ जीवन व्यतीत कर रहे , आवश्यकता पड़ने पर गर्मियों के समय में एयर कंडीशनर कूलर ,सर्दियों के समय में हीटर, बरसात के समय में भी अच्छे बड़े घर सुख सुविधा प्राप्त करने के लिए नौकर चाकर,, घूमने के लिए वाहन आदि प्राप्त हुए हैं, लेकिन इसके विपरीत कुछ ऐसे लोग परिवार भी हैं जिनके पास घर नहीं है दो जून की रोटी खाने को नहीं है वह किस प्रकार से रहते हैं ईश्वर क्या सबके लिए बराबर है? क्या ईश्वर ने सबको खाना और संभव आवश्यकता पूर्ण करने के लिए क्षमताएं प्रधान करी हैं ? इसी ज्ञान अर्जन के लिए वह अपने इस पदयात्रा पर निकला है कि ईश्वर के मंदिर जाने से पहले खुद के मन में उपस्थिति दर को पहचान ले ईश्वर का ज्ञान वहीं से प्राप्त होना शुरू हो जाएगा।