देहरादून – उत्तराखंड (भारत) 25 मार्च। आज पूरे देश एवं देश के विभिन्न प्रांतों से दुनिया के विभिन्न देशों में बसे भारतीयों में विशेष करके सनातन धर्म को मानने वालों के लिए यह विशेष दिन है।
इस दिन लोग दुल्हंदी के रूप में एक दूसरे को अभी गुलाल आदि रूप से रंग कर खुशी का इजहार करते हैं एवं एक दूसरे के जीवन में खुशी आने की कामना करते हैं।
इससे एक दिन पूर्व अक्सर मध्य रात्रि को या तड़के प्रातः काल होलिका दहन किया जाता है इसके उपरांत होलिका दहन एवम विष्णु भक्त प्रह्लाद के अग्नि से सकुशल बाहर लोट आने पर फलस्वरूप प्राप्त खुशी के रूप में होलिका दहन के अंत के बाद रंगों के साथ इस त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है,,,अन्य रूप से यह पर्व नवसंवत का आरंभ तथा वसंतागमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था, इस कारण इसे मन्वादितिथि कहते हैं। एक अन्य कथा के अनुसार त्रेतायुग की शुरुआत में भगवन विष्णु जी ने धूलि का वंदन किया था। इसलिए होली के इस त्यौहार को दुलंदी के नाम से भी मनाया जाता है।
हिंदुओं का एक त्योहार जो होली जलने (होलिका) के दूसरे दिन चैत बदी १ को होता है और जिसमें सबेरे के समय लोगों पर कीचड़, धूल आदि और संध्या को अबीर, गुलाल आदि डालते हैं, उक्त त्योहार का दिन।
अन्य रूप से इसे समझें तो होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जलेगी और इसी के बल पर वह प्रहलाद को चिता पर लेकर बैठ गई। विष्णु भक्त की भक्ति रंग लाइ और प्रहलाद अग्नि में से सुरक्षित बाहर आ गए पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका अग्नि में जलकर ख़ाक हो गई। इसके बाद से ही होलिका दहन मनाने की परंपरा शुरू हुई।